जानें महामृत्युंजय मन्त्र का महत्व और उससे जुड़े समस्त तथ्यों के बारे में !
महामृत्युंजय मन्त्र “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥” को हिन्दू धर्म में अंकित तमाम मंत्रों में विशेष स्थान दिया गया है। इस मंत्र को मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाला माना जाता है। शास्त्रों में इसे त्रयंबकम मंत्र भी कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र का जाप करने से मृत्यु पर विजय प्राप्त की जा सकती है। आज इस लेख के ज़रिये हम आपको सभी मंत्रों में सर्वमान्य माना जाने वाले महामृत्युंजय मंत्र के महत्व और उससे जुड़ी तमाम मुख्य तथ्यों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
कैसे हुई महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति ?
जहाँ तक महामृत्युंजय मन्त्र की उत्पत्ति का सवाल है तो इस मंत्र का जिक्र यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में किया गया है। खासतौर से इस मंत्र के द्वारा शिव जी स्तुति की जाती है। भगवान शिव को मृत्यु पर विजय पाने वाले के रूप में जाना जाता है और भगवान शिव जी के इस मंत्र का जाप कर आम जन भी मृत्यु को मात देने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। हमारे शास्त्रों के अनुसार इस मंत्र को सबसे पहले ऋषि मार्कंडेय ने पाया था। ऋषि मार्कंडेय के पिता ऋषि मृकण्डु ने अपनी पत्नी के संग भगवान शिव से पुत्र की प्राप्ति के लिए तप किया था। उनके तप से शिव जी प्रसन्न हुए लेकिन पुत्र प्राप्ति के लिए उनके सामने दो विकल्प रखें। पहला अल्पायु महाबुद्धिमान पुत्र और दूसरा मंद बुद्धि वाला दीर्घायु पुत्र। ऋषि मृकण्डु ने शिव जी के दिए पहले विकल्प का चुनाव किया और उन्हें महाबुद्धिमान पुत्र मार्कंडेय की प्राप्ति हुई जिसकी आयु महज 16 वर्ष ही थी। माना जाता है कि ऋषि मार्कंडेय को जब इस बात का पता चला तो उन्होनें शिव जी की घोर आराधना करनी शुरू कर दी। यहाँ तक की जब यमदेव उन्हें लेने आए तो मार्कंडेय ने शिवलिंग को पकड़ लिया और उनके साथ जाने से इंकार कर दिया। अंतः शिव जी ने मार्कंडेय को अमरता का वरदान दिया और महामृत्युंजय मंत्र खासतौर से ऋषि मार्कंडेय को प्राप्त शिव के गुप्त मंत्र के रूप में जाना गया। हालाँकि मार्कंडेय के बाद दैत्य गुरु शुक्राचार्य में शिव जी से इस मंत्र को प्राप्त कर मृत्यु प्राप्त कर चुके दानवों को जिंदा किया था। इसके लिए शुक्राचार्य ने महामृत्युंजय मंत्र की संजीविनी विद्या मंत्र का प्रयोग किया था जो निम्नलिखित है।
यं प्राप्य भार्गवः शाम्भोमृतान दैत्याञ्जीवयत।
तारः खं व्यापिनीचंद्रयुक्तारश्चतुराननः।
अघरिशबिंदुसंयुक्तो हंसः सर्गी च भूर्भुव:।
सकारो बालसर्गा ढयस्यत्रयंबकम वैदिको मनुः।
भूर्भुवः स्वाभुर्जजगेशास्तारी जूंसर्गवान भृगुः।”
महामृत्युंजय मन्त्र का अर्थ और उसके सभी शब्दों का विवरण निम्नलिखित है
शिव के इस प्रमुख मंत्र “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥” का अर्थ है कि प्रत्येक साँस में जीवन का संचार करने वाले शिव जिस तरह से ककड़ी अपनी तना के साथ पक जाने के बाद उस तना रुपी संसार के सभी बंधनों से मुक्त हो जाती है, उसी तरह से हम भी इस संसार में उस ककड़ी की तरह पक जाने के बाद ही जन्म और मृत्यु के इस बंधन से मुक्त होकर शरीर का त्याग कर आपमें समा जाए और मोक्ष को प्राप्त करें।
इस मंत्र के सभी शब्दों का विवरण इस प्रकार से है:-
ॐ : प्रणव
त्र्यम्बकं : तीन नेत्रों वाले शिव
यजामहे: हम आपकी पूजा अर्चना करते हैं, आपका सम्मान करते हैं
सुगंधिम: सुगंधित, धीमी खुशबु
पुष्टि : समृद्ध जीवन से परिपूर्ण करें
वर्धनम : शक्ति प्रदान करने वाला, पोषक, स्वास्थ्य एवं धन में वृद्धि करने वाला
उर्वारुकम् : ककड़ी
इव : जिस तरह से
बन्धनात् : तना
मृत्योः : मृत्यु से
मुक्षीय : मुक्त करें
मा : न
अमृतात् : मोक्ष, अमर
महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से होने वाले प्रमुख लाभ:-
आम तौर पर इस मंत्र का जाप मोक्ष प्राप्ति और दीर्घायु जीवन के लिए किया जाता है। लेकिन इसके साथ ही साथ यहाँ हम आपको इस मंत्र के जाप से मिलने वाले अन्य लाभों के बारे में भी बताने जा रहे हैं जो कि निम्न वर्णित है।
- इस मंत्र के जाप से घर या भूमि संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
- व्यापारियों के लिए इस मंत्र का जप उन्हें व्यापार में सफलता दिला सकता है।
- इस व्यापक मंत्र के जाप से शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है और बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
- इस मंत्र मात्र से आर्थिक लाभ मिल सकता है और पारिवारिक सुखों में वृद्धि हो सकती है, भाई बहनों का साथ मिल सकता है।
- नियमित रूप से इस मंत्र का जाप करने से मनुष्य का सर्वांगीण विकास होता है।
- इस मंत्र का नियमित जाप करने से आप किसी प्रकार के दुर्घटना का शिकार होने से बच सकते हैं।
- इससे मानसिक स्थिरता आती है और मन शांत रहता है।
- पुत्र प्राप्ति के लिए भी इस मंत्र का जप करना फलदायक साबित होता है।
- यदि महामृत्युंजय मंत्र का जाप सवा लाख बार किया जाए तो इससे रोग और भय से मुक्ति मिलती है।
- पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इस मंत्र का जाप करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति भी की जा सकती है।
- वैवाहिक जीवन में मधुरता और सुयोग्य जीवन साथी के लिए भी इस मंत्र का जाप करना फलदायक साबित हो सकता है।
- इस मंत्र का जाप कर आप शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
- महामृत्युंजय मंत्र का जप कर आप कार्य क्षेत्र में भी सफलता हासिल कर सकते हैं।
महामृत्युंजय मंत्र जाप के दौरान ये सावधानियां ज़रूर बरतें
यदि आप किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए इस मंत्र का जाप कर रहे हैं तो इस दौरान आपको कुछ विशेष सावधानियां अवश्य बरतनी चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र जाप के दौरान बरती जानी वाली कुछ सावधानियां निम्नलिखित है।
- सबसे पहले इस मंत्र के जप के दौरान उच्चारण का ख़ास ध्यान रखें, सभी शब्दों का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए।
- इस मंत्र का जाप एक निश्चित संख्या में ही किया जाना चाहिए, जैसे यदि आप किसी रोग या अकाल मृत्यु से मुक्ति के लिए इस मंत्र का जप कर रहे हैं तो आपको कम से कम सवा लाख बार इस मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए।
- इस मंत्र के जाप के लिए खासतौर से रुद्राक्ष की माला का ही प्रयोग किया जाना चाहिए।
- मंत्र जाप के दौरान आवश्यक रूप से दीये और धूप जलते रहने चाहिए।
- मंत्र के उच्चारण के दौरान मंत्र होठों से बाहर कभी नहीं आना चाहिए, इसलिए इस मंत्र का जाप यदि मध्यम स्वर में करें तो ज्यादा बेहतर होगा।
- महामृत्युंजय मंत्र जप के दौरान अपने पास शिव जी की मूर्ति या फोटो ज़रूर रखें, साथ ही महामृत्युंजय यंत्र को भी पास रखना फलदायी साबित हो सकता है।
- इस मंत्र का जाप यदि आप शिव मंदिर में कर रहे हैं तो मंत्रोउच्चारण के साथ ही शिवलिंग पर दूध मिले जल का अभिषेक भी करते रहना चाहिए।
- महामृत्युंजय मंत्र का जप हमेशा पूर्व दिशा में बैठकर ही करना चाहिए।
- इस मंत्र का जाप करने से पहले किसी भी प्रकार के तामसी भोजन या मांसाहार का सेवन ना करें।
- मंत्र जाप के दौरान अपना ध्यान केवल मंत्र पर ही रखें उसे इधर-उधर भटकने ना दें।
- यदि आपने एक निश्चित संख्या में मंत्र जाप का संकल्प लिया है तो उसे एक बार में ही पूरा करें।
हम आशा करते हैं कि हमारा ये लेख आपको पसंद आया होगा। हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।
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